प्रत्येक परिवार गाय का रखवाला बन जाए तो देश में आमूल परिवर्तन होंगे – डॉ. मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ    09-Dec-2019
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पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि “अगर प्रत्येक परिवार गाय का रखवाला बन जाए तो देश में आमूल परिवर्तन होंगे. सारा समाज जागृत होगा. समाज की भावना जागे तो मनुष्य का जीवन ही बदल जाएगा. भारतीय संस्कृति ने गाय को 'विश्व माता' कहा है. हमारी संस्कृति गाय को कामधेनु मानती है. मगर उसी गाय को कुछ हिन्दू ही बूचड़खाने तक पहुंचा देते हैं,"
शनिवार को गो विज्ञान संशोधन संस्था व दादरा नगर हवेली मुक्ति संग्राम समिति द्वारा श्रद्धेय मोरोपंत पिंगले गौ-सेवा पुरस्कार वितरण समारोह में उपस्थित गौ भक्तों को मुख्य वक्ता के रूप में सरसंघचालक संबोधित कर रहे थे. इस अवसर पर मंच पर गौ विज्ञान संशोधन संस्था के अध्यक्ष राजेंद्र लुंकड, कार्यवाहक बापू कुलकर्णी, बाबासाहेब पुरंदरे, पुणे महानगर संघचालक रवींद्र बंजारवाडकर उपस्थित थे.
सरसंघचालक जी ने चयनित संस्था व व्यक्तियों को गौ सेवा पुरस्कार प्रदान किया. श्रद्धेय मोरोप॑त पिगले राष्ट्रीय गौ सेवा पुरस्कार कोलकाता स्थित गौ सेवा परिवार को प्रदान किया गया. एक लाख रुपए, स्मृति चिन्ह, शॉल एवं श्रीफल पुरस्कार स्वरूप दिये गए. श्रद्धेय मोरोपंत पिंगले राज्य स्तरीय पुरस्कार स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्य करने वाली वैद्य ज्योतिताई मुंदरगी (तलेगांव दाभाड़े) व वैद्य अजीत उदावंत (भोसरी) को प्रदान किया गया. श्रद्धेय मोरोप॑त पिंगले गौ सेवा प्रचार पुरस्कार दैनिक 'आज का आनंद' के संपादक श्याम अग्रवाल को प्रदान किया गया. श्रद्धेय मोरोपंत पिंगले पंचगव्य उत्पादन व प्रशिक्षण पुरस्कार से पूनम राउत (पारगाव खंडाला, जि. सातारा) को सम्मानित किया गया.
 
सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने सवत्स धेनु (गाय एवं बछड़े) का पूजन भी किया. साथ ही वरिष्ठ पत्रकार मोरेश्वर जोशी लिखित 'गौ विज्ञान आंदोलन' के प्रवर्तक श्रद्धेय मोरोपंत पिंगले पुस्तक का विमोचन भी किया.
मोहन भागवत जी ने कहा कि ''गायों का संवर्धन-संरक्षण करना हम सबका कर्तव्य है. हमारे समाज में ऐसी कई संस्थाएं व गौ-भक्त हैं जो लगातार गायों के संरक्षण-संवर्धन का कार्य कर रहे हैं. गाय के शरीर में 33 कोटि देवी-देवताओं का निवास माना जाता है. गायों के प्रति समाज जागृत हुआ तो आमूल परिवर्तन हो सकता है. इससे गायों को लेकर संपूर्ण देश जागृत होगा. हर परिवार के जीवन में परिवर्तन निश्चित रूप से हो सकेगा. प्रत्येक परिवार गौ-पालक बना तो कई समस्याओं का जड़ से समाधान संभव हो सकता है. जब तक यह काम नहीं होगा, तब तक नेता भी सहायता नहीं कर सकते. यह कार्य हुआ तो 10 सालों में समाज बदल जाएगा. मनुप्य के 'मन को सुमन' बनाने का कार्य गाय करती है. गायों की सेवा करने से कैदियों में आपराधिक प्रवृत्ति कम होती है, यह अनुभव भी जेल अधिकारियों को हुआ है.
 
 
 
उन्होंने कहा कि समाज के दैनंदिन जीवन चक्र के संचालन में गाय का योगदान सर्वश्रेष्ठ है. इसलिए गाय का महत्व संपूर्ण समाज को बताया जाना चाहिए. गायों के संवर्धन से अर्थतंत्र में वृद्धि होती है, लेकिन सिर्फ आर्थिक दृष्टि से गाय का आंकलन न करें. हमारे घरों में वृद्ध माताएं रहती हैं. उनसे हम प्रेम करते हैं. हम अपनी मां को अपने से दूर नहीं करना चाहते, इसी तरह गाय को भी दूर नहीं रखना चाहिए. वैज्ञानिक कसौटियों पर भी गाय को सर्वश्रेष्ठ ठहराया गया है. विदेशों में भी गाय को लेकर लोगों के विचार बदल रहे हैं. भारतीय वंश की गायों का निर्यात बहुत पहले से होता रहा है, ब्राजील जैसे देश में वहां के गौ-वंश को बदलने के लिए भारतीय वंश की गायों को भेजा जा रहा है. अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के साधन के रूप में गायों की ओर देखा जा रहा है. देशी गायों का उपयोग अधिकाधिक संख्या में होने लगा है, मगर गौ-रक्षा का कार्य सिर्फ सरकार पर आधारित होने से नहीं चलता, हर व्यक्ति के मन में गौ-रक्षा का भाव जागृत होना चाहिए. किसी महापुरुष पर आश्रित होने से काम नहीं चलता, स्वयं ही हर अच्छे कार्य की शुरुआत करनी चाहिए, समाज में यह भावना जागृत हुई तो कोई भी गाय को कत्लखाना नहीं भेजना चाहेगा.

 
उन्होंने कहा कि 'गाय ही सृष्टि चक्र के केंद्र में है, यह बात हमें समाज को बतानी होगी. स्व. मोरोपंत पिंगले के विषय में उन्होंने कहा, कि वे परमवैभव संपन्न समाज का निर्माण करना चाहते थे और उन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया. उनके आदर्शों का अनुकरण करेंगे तो जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन हो सकते हैं.