राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प. पू. सरसंघचालक मोहनजी भागवत का वर्ष प्रतिपदा (25 मार्च, 2020) के अवसर पर संदेश :

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ    25-Mar-2020
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प. पू. सरसंघचालक मोहनजी भागवत का वर्ष प्रतिपदा (25 मार्च, 2020) के अवसर पर संदेश :
 
वर्ष प्रतिपदा उत्सव संकल्प का दिवस
 
आत्मीय स्वयंसेवक बन्धुगण,
 
आप सभी को नववर्ष युगाब्द 5122 की अनेकों शुभकामनाएं. इस संवत्सर का आरंभ ही ऐसे समय में हो रहा है, जब सारा विश्व एक वैश्विक संकट से जूझने में लगा है. सारे विश्व के साथ उस युद्ध में भारत भी लगा है. और इसलिए, स्वयंसेवकों का दायित्व भी है. यह उत्सव संकल्प दिवस है, परंपरा में अपने संकल्प का दिवस माना जाता है. कोरोना नामक विषाणु को परास्त करने के लिए जो देशभर में प्रयास चले हैं, उसमें विजय पाने का संकल्प करके, हमको अपने कार्य को भी करना है और कार्य करते समय सामाजिक दायित्व का निर्वाह भी ठीक ढंग से करना है.
हमारा कार्य - परिस्थिति निरपेक्ष, लचीलापन हमारी कार्यपद्धति का वैशिष्ट्य
 
हम जानते हैं कि हमारा कार्य, उसकी पद्धति एक प्रकार की है. कार्यक्रम अनेक प्रकार से हो सकते हैं. डॉक्टर हेडगेवार कहते थे कि रात को सब स्वयंसेवक अपना बिस्तर लेकर सोने के लिए एक जगह पर आएं और सुबह उठकर चले जाएं तो भी संघ का कार्य हो सकता है. इस वचन की पड़ताल भी संघ के इतिहास में एक-दो बार हुई है. दो-दो साल अपनी शाखाएं बंद रहीं, लेकिन अपना कार्य चलता रहा.
 
कल रात को 12 बजे से आने वाले 21 दिवस तक संपूर्ण देश में जो लाकडाउन घोषित हुआ है, उसका पालन करके भी अपना कार्य ठीक से हो सकता है. हम अपने घर के अंदर या अपने बिल्डिंग में बहुत छोटे समूहों में, केवल 5-7 लोगों के साथ, घऱ के सदस्यों के साथ प्रार्थना कर सकते हैं. अमुक एक विशिष्ट प्रकार की आचार पद्धति, विशिष्ट प्रकार के कार्यक्रम ये सब सामान्य परिस्थिति में जैसी अपनी शाखा चलती है, उसके लिए ठीक है. लेकिन असाधारण परिस्थिति में, एक असाधारण इस प्रकार की नई शैली को अपना कर, हम उतने दिनों तक अपनी शाखा की जो आवश्यक बात है कि एकत्र आना और प्रार्थना करना, अपना सामूहिक संकल्प मन में दोहराना, इसको करके उसको निभा सकते हैं.
 
अपने से शुरुआत करके समाज में अनुशासन पालन का भाव जगाएं
 
माननीय सरकार्यवाह जी ने इसके संबंध में पहले कुछ सूचनाएं दी हैं. जैसी आवश्यक है वैसे आगे भी उनकी सूचनाएं आती रहेंगी. स्वाभाविक है वो सारी सूचनाएं, इस विषाणु के विरुद्ध जो संघर्ष चल रहा है, उसके लिए जो शासन प्रशासन द्वारा तय नीति है, उसके अनुकूल ही होंगी. उसका हमने ठीक से पालन करना और उस सारे अनुशासन का पालन समाज भी ठीक से करे ऐसा उसका प्रबोधन, इन सारे अनुशासन के निर्बंधों का पालन करते हुए करना, यह हमको करके दिखाना है. सरकार्यवाह जी की सूचना आने के पहले ही, इस संबंध मे जो-जो कर्तव्य अपने जिम्मे आते हैं, उनको निभाने की शुरूआत स्वयंसेवकों ने कर दी है.
शासन-प्रशासन का सब प्रकार सहयोग में, समाज के सब प्रकार के प्रबोधन में और ऐसी परिस्थिति में जो राहत की आवश्यकता होती है, शासन-प्रशासन की अनुमति और सलाह से, उसमें सारे राहत का प्रबंधन करना, ये सारे काम स्वयंसेवकों ने शुरू कर दिए हैं. संकट का फैलाव इतना नहीं था, इसलिए जहां था, वहां शुरू हो गया. हो सकता है कि अब सारे देश में हमको कुछ करना पड़े. जहां-जहां जैसी आवश्यकता है, वहां अपनी तरफ से सारे अनुशासनों का, निर्बंधों का पालन करते हुए और समाज भी उसमें ठीक चले. और हम सब मिलकर इस आपत्ति को परास्त करें, ऐसा हम सबको करना चाहिए.
 
सामूहिक जिम्मेवारी एवं राष्ट्रीय चरित्र के भाव से ही समाज विजयी होगा
 
इस संघर्ष में मुख्य बात है, समाज के द्वारा इस सारे अनुशासन का पालन करना. बाकि दवाई, अन्य आवश्यक सेवाएं, सुविधाएं हैं वो सहायक होंगीं. लेकिन जो मूल बात है कि ये फैलाव संसर्ग से होता है, उस संसर्ग को टालना. जिसे आजकल अंग्रेजी में सोशल डिस्टेंसिंग कहा जा रहा है. उसको ठीक यशस्वी करना. यही इस युद्ध की बड़ी महत्व की बात है जो समाज की सामूहिक जिम्मेवारी की कल्पना है, और उनका जो सामूहिक अनुशासन है, उसके आधार पर यशस्वी होती है. संघ की हमेशा शिक्षा इस सामाजिक अनुशासन का पालन करने की और राष्ट्रीय चरित्र के तकाजे से अपने जीवन में राष्ट्रहित को अनुसरण करते हुए अपने छोटे-मोटे स्वार्थों को बाजू रखकर काम करने की जो आदत है, वो आदत इसमें काम में आने वाली है और इसके हम अभ्यस्त हैं. इसलिए ये काम हम करेंगे तो समाज में भी उन संस्कारों का प्रभाव इससे होगा और हमारा भी अभ्यास होगा.
 
कभी-कभी ऐसा लगता है कि ये कब तक चलेगा और मिलना जुलना नहीं होगा तो अपना काम कैसे होगा? अपना काम व्यक्ति निर्माण का काम है, संस्कारों का काम है, और संस्कारों का वातावरण समाज में निर्माण करने का है. इस लड़ाई में जो विषाणु के खिलाफ तरह-तरह के निर्बंध का पालन करके, उसको नाकाम करने का जो काम है, वो काम करते समय भी यही सारा काम अपने लिए और समाज के लिए भी, हम लोग इस प्रकार से कर सकते हैं.
 
पू. डॉ. साहब का स्मरण रखते हुए संघ से प्राप्त संस्कारों को चरितार्थ करने का समय
 
संकल्प की शक्ति ये बड़ी शक्ति होती है. हम इस संकल्प को ध्यान में रखें, और परिस्थिति में जो अपने कर्तव्य का भान है उस पर कायम रहते हुए अपने स्वयंसेवकत्व का स्मरण रखकर आगे चलते रहें, तो जिस प्रकार और जिनका यह नववर्ष का दिन जन्मदिन भी है, ऐसे अपने संघ निर्माता प. पू. आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार, जिनको आज हमने आद्य सरसंघचालक प्रणाम दिया है, उनको प्रणाम देते समय भी उनके जीवन की जब याद करते हैं तब ध्यान में आता है कि इसी प्रकार तत्व को कायम रखते हुए परिस्थिति के अनुसार शैली का अंगीकार करके चलना और मूल संकल्प को याद रखकर स्वयं उदाहरण बनकर सब का मन बनाना, यह जो संघ कार्य की मूल पद्धति है, संघ का स्वयंसेवक जहां भी जाता है, किसी भी काम को करे नहीं बदलती. उसी शैली को कायम रखकर आने वाले दिनों में हम अपना कर्तव्य करते हुए संपूर्ण देश को इस विषाणु के खिलाफ जो युद्ध चल रहा है, उसमें भी विजय प्राप्त करने का रास्ता प्रशस्त करने वाला एक उदाहरण सामने ला सकेंगे, ऐसा विश्वास है. इस विश्वास को चरितार्थ करने का समय है. उसका संकल्प करके हम सब लोग चलें, यही आप सबसे इस अवसर पर मेरा अनुरोध है.