राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक स्वर्गीय श्री सोहन सिंह जी की स्मृति में तालकटोरा स्टेडियम में श्रद्धांजलि सभा का हुआ आयोजन |
सोहन सिंह जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए पूजनीय सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी ने कहा कि दुनिया में सैदव के लिए कोई नहीं आता | भगवान को भी जाना पड़ता है | कुछ लोग आते हैं और जीवन कैसा जीना बताते हैं। जीवन में कैसे चलना यह उन्होंने हमें सिखाया | सोहन सिंह जी का स्वयंसेवकों के साथ परिवार जैसा संबंध था। कार्यकर्ताओं के बारे में जाँच पड़ताल करवाने वालों में से एक थे। उनके जाने से रिक्तता पैदा हुई है लेकिन ऐसे लोगों के प्रति उनका स्मरण और आगे चलने के लिए रखे। उन्होंने बड़ा होने के लिए कुछ नहीं किया। सहज और स्वाभाविक रूप से रहे। उनके मन में कभी भी अहंकार का भाव नहीं आया । उनसे संपूर्ण समर्पण हमें सीखना चाहिए। संघ के कार्यकर्ता को कैसा होना चाहिए, व्यवहार कैसा होना चाहिए यह भी हमें सीखना चाहिए। उनके जीवन को अपने आचरण से जीवित रखना है। अपने जीवन से उन्हें आगे बढ़ाना चाहिए। उस परम्परा को आगे बढ़ाना है, उन्हें ज्यादा आनंद मिलेगा।
गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि सोहन सिंह जी से मेरा व्यक्तिगत और नजदीक का परिचय नहीं था लेकिन उनके बारे हर किसी ने यही कहा कि कर्मयोगी थे। उनके जीवन से लगता है कि साधारण कार्यकर्ता अपने जीवन में असाधारण कर सकता है। ऐसे व्यक्तित्व के बारे में सुनकर लगता है कि पद के कारण ही बड़ा नहीं हुआ जा सकता, अपनी कृतियों से भी बड़ा हो सकता है। अंतिम दिनों में भी उन्होंने किसी सहयोगी को सेवा के लिए नहीं लिया। वे एक आध्यात्मिक व्यक्तित्व थे। ऐसे व्यक्तित्व के लिए श्रद्धांजलि की जरूरत नहीं होती। ऐसे लोगों का व्यक्तित्व लोगों के लिए प्रेरणा बन जनता है।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने श्रद्धांजलि के तौर पर संदेश भेजा। संदेश में कहा गया कि सोहन सिंह जी अपने जीवन में आचार संहिता के पालन में उंच-नीच नहीं होने दी। ऐसे व्यक्तित्व का चला जाना खालीपन का अहसास कराता रहेगा।
विश्व हिन्दू परिषद् के संरक्षक पूजनीय अशोक सिंघल जी ने कहा कि मेरा सोहन सिंह जी से परिचय 1953-54 में हुआ। उनके द्वारा निर्मित कार्यकर्ताओं का जीवन भी उनकी तरह ही कठोर रहा। उस काल में प्रचारक पद्धति की आवश्यकता थी और सोहन सिंह प्रचारक बने। वे स्वतंत्रता से पूर्व प्रचारक निकले। व्यतिगत संबंध ज्यादा नहीं आया लेकिन जितना भी संबंध आया उससे यही कहा जा सकता है वे कर्म कठोर थे। उनका जीवन जैसा जीवन आज हो तो देश फिर से अच्छी स्थिति में पहुंच सकता है।
उत्तर क्षेत्र संघचालक डॉ. बजरंग लाल गुप्त जी ने कहा कि व्यक्ति निर्माण कला के मर्मज्ञ थे। सैकड़ों कार्यकर्ताओं को उन्होंने गढ़ा। कार्यकर्ताओं की खूब संभाल करते थे। वे कर्तव्य कठोर थे। अत्यंत परिश्रम करते थे, बहुत लोगों ने देखा होगा। एक वर्ग में रात के वक्त स्वयं घड़ों में पानी भरा। स्वयं के लिए बहुत कठोर थे। अस्वस्थता के बारे में किसी से कुछ नहीं बोलते थे। अंतिम दिनों में भी खुद से ही अपने कपड़े धोए। ऐसे श्रेष्ठ कार्यकर्ता का जीवन हमें प्रेरणा देता रहेगा।