महावीर स्वामी के निर्वाण के 2550 वर्ष पूर्ण होने पर मा. सरकार्यवाह जी का वक्तव्य

14 Mar 2023 13:03:11

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा
सेवा साधना एवं ग्राम विकास केंद्र, पट्टीकल्याणा – पानीपत (हरियाणा)
चैत्र कृष्ण 5-7 युगाब्द 5124 (12-14 मार्च 2023)

महावीर स्वामी के निर्वाण के 2550 वर्ष पूर्ण होने पर मा. सरकार्यवाह जी का वक्तव्य
 

Sarkaryavah ji 
 
भगवान महावीर की निर्वाण प्राप्ति के 2550 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। उन्होंने कार्तिक अमावस्या के दिन अष्टकर्मों का नाश करके निर्वाण प्राप्त किया था। जनमानस को ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जानी वाली इस दिव्य विभूति ने आत्मकल्याण तथा समाज कल्याण में अपने जीवन को समर्पित कर मानवता पर परम उपकार किया। मानवता के कल्याण को दृष्टिगत रखते हुए उन्होंने सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य के रूप में पाँच सूत्र दिए थे, जिनकी सार्वकालिक प्रासंगिकता है। भगवान महावीर ने नारीशक्ति को सम्मानजनक स्थान प्रदान करते हुए उन्हें खोया हुआ गौरव लौटा कर समाज में लैंगिक भेदभाव मिटाने का युगांतरकारी कार्य किया।
 
अपरिग्रह के संदेश से उन्होंने अपनी आवश्यकताओं को सीमित करते हुए संयम पूर्ण जीवन जीने तथा अपनी अतिरिक्त आय को समाज के हित में समर्पित करने की समाज को दिशा दी। हमारी वर्तमान जीवन शैली से पर्यावरण को हो रही हानि से उसे बचाने में अपरिग्रह का सूत्र बहुत महत्वपूर्ण है। अहिंसा, सह-अस्तित्व और प्राणिमात्र में समान आत्मतत्व के दर्शन करने की उनकी शिक्षा का अनुपालन विश्व के अस्तित्व के लिए परम आवश्यक है। भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित कर्म सिद्धांत में अपने कष्टों और दुःखों के लिए दूसरों को उत्तरदायी ठहराने से बचने तथा अपने कर्म को ही कर्ता के सुख-दुःख का कारण मानने का सन्देश निहित है।
 
“स्यादवाद” भगवान महावीर का एक प्रमुख सन्देश है। अनेक प्रकार के द्वन्द्वों से पीड़ित मानवता को बचाने तथा शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए स्यादवाद आधार बन सकता है।
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मत है कि वर्तमान को वर्द्धमान की बहुत आवश्यकता है। भगवान महावीर की निर्वाण प्राप्ति के 2550 वें वर्ष के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करता है। सभी स्वयंसेवक इस निम्मित्त आयोजनों में पूर्ण मनोयोग से योगदान करेंगे तथा उनके उपदेशों को जीवन में चरित्रार्थ करेंगे। समाज से यह अपेक्षा है कि भगवान महावीर की शिक्षा को अंगीकार करते हुए विश्व मानवता के कल्याण में स्वयं को समर्पित करे।
 
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